Sunday, August 30, 2009

हिंदुस्तान-पाकिस्तान बटवारे का जिम्मेदार कौन ???

14 Aug 1947 में हिंदुस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए ! एक टुकडा हिंदुस्तान और दुसरे टुकड़े का नाम पाकिस्तान कहलाया ! बटवारे के ६२ साल बाद अब ये प्रशन जोर - शोर से उठने लगा है की आखिरकार बटवारे का जिम्मेदार कौन था ....???  जशवंत सिंह ने अपनी किताब Jinnah ,India-Partition, Independence में बटवारे का जिम्मेदार जिन्नाह, नेहरु , और पटेल को माना है ! परन्तु  भारतीय जनता पार्टी  और संघ   ने ये मानने से इंकार कर दिया की इसमें सरदार पटेल का भी कोई योगदान था ! इस गलती का खामियाजा जसवंत को पार्टी से निकल का देना पड़ा...! मगर मेरा मानना है की बटवारे का जिम्मेदार और कोई नही बल्कि उस समय के धार्मिक हालत थे ! मेरे हिसाब से हिंदुस्तान और पाकिस्तान कभी एक थे ही नही ! बटवारे से पहले भले ही हिन्दू औए मुस्लिम एक साथ रहते हो परन्तु उनके बिच धर्म की धार्मिक विचारधाराओ की बहुत बड़ी खाई थी ! वे थोरा बहुत मिलते और जुलते थे पर  एक दुसरे से दुरी बनाये राखी थी ! और इसका सबसे बड़ा फायदा अंग्रेजो  ने उठाया था ! उन्हों ने devide and rule की policy अपनाई और हिन्दू और मुस्लमान को आपस में लड़वाते रहे !
हिदू और मुस्लमान की दुरिया तब और बढ़ गयी जब 30 dicember , 1906 को ढाका के नवाब सलीम खान के निमंत्रण पर एक सम्मेल्लन हुआ ! नवाब वाक़रुल मुल्क इसके अध्यक्षता में थे ! इसी सम्मलेन में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का उदय हुआ ! लीग का संबिधान 1907 में कराची में बना और इस संबिधान के अनुसार प्रथम अधिवेसन 1908 में अमृतसर में हुई जहाँ आगा खा को इसका अध्यक्ष बना दिया गया ! 1920 में ये दुरिया और बढ़ गयी जब कांग्रेस हिन्दू महा सभा जैसे हिन्दू धार्मिक राष्ट्रियाबदी संगठनो के काफी करीब दिखने लगी ! जैसे-जैसे हिन्दू और मुसलमानों के बिच सम्बन्ध ख़राब होते गए , दोनों समुदाय के  उग्र धार्मिक जुलुस निकलने लगे ! कई शहरो में हिन्दू मुस्लिम दंगे हुए ! हर दंगो के साथ दोनों समुदायों के बिच फासला बढ़ता गया !
इन समुदायों के बिच दुरिया इतनी बढ़ गयी की कभी " सरे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा " लिखने वाले मोहम्मद इकबाल ने अब खुल कर मुसलमानों केलिए अलग देश पाकिस्तान की मांग कर दी ! पाकिस्तान शब्द का जन्मदाता ओक्स्फार्ड विश्वविद्यालय का विद्यार्थी चौधरी रहमत अली !

1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्ष सर मोहम्मद इक़बाल ने मुसलमानों केलिए अल्पसंख्यक राजनितिक हितों की रक्षा के उद्देश्य से पृथक निर्वाचिका की जरूरत पैर एक बार फिर जोर दिया गया ! मन जाता है की बाद के सालो में पाकिस्तान की मांग केलिए जो आवाज़ उठी उसका औचित्य उनके इसी बयान से उठा था !
उन्हों ने जो कहा वह इस प्रकार था -


मुझे यह कहने में जरा भी हिचकिचाहट नही है की अगर अस्थायी सांप्रदायिक बंदोवस्त के तौर पैर भारतीय मुस्लमान को अपने भारतीय होमलैंड में अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुसार पूर्ण  एवं  स्वतंत्र विकास का अधिकार दिया जाये तो वह भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्वेछाबर करने को तैयार हो जायेगा ! प्रतेक समूह को अपने तरीके से स्वतंत्र विकाश का अधिकार है ! यह सिद्धांत किसी संकुचित साम्प्रदायिकता की भावना से नही उपजता ! जो समुदाय अन्य समुदाय के प्रति दुर्भावना रह्कता है वह नीचऔर अधम है ! मै अन्य धर्मो और सामाजिक संस्थानों का अगाध सम्मान करता हूँ ! कुरान की हदयातो के अनुस्वार मेरा दईत्वा है की अगर जरूरत है तो मै उनके उपासना स्थलों की भी रक्षा करूँगा !लेकिन मै उस संप्रदायसमूह को प्रेम करता हूँ जो मेरे लिए जीवन और आचरण का श्रोत है , जिसने मुझे अपना धर्म , अपना साहित्य , अपनी संस्कृति , देकर मुझे ऐसा बनाया है और इस प्रकार मेरी मौजूदा चेतना में अपने अतीत को एक सजीव कार्यात्मक तत्व के रूप में समो दिया ...! ऐसे में अपने उच्चतर आयाम में सांप्रदायिक भारत जैसे देश के भीतर एक लयात्मक समुच्चय के निर्माण केलिए अपरिहार्य है ! एउरोपे देशो की तरह भारतीय समाज की इकाई भुवागो में बाटी हुई नही है ! भारत के सामुदायिक समूहों को मान्यता दिए बिना यंहा एउरोपिया लोकतंत्र के सिद्धांत को लागु नही कीया जा सकता ! भारत के भीतर एक मुस्लिम भारत की स्थापना केलिए मुसलमानों की तरफ से उठ रही मांग बिलकुल सही है ...!

पाकिस्तान राष्ट्रीय की मांग सर्वप्रथम मोहम्मद अली जिन्नाह ने 23 march 1940 को की थी ! पाकिस्तान की प्रथम मांग मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेसन में की गयी ! पाकिस्तान की मांग जिन्नाह ने जरुर की थि ! परन्तु इसकेलिए जिन्नाह को पूरी तरह जिम्मेदार नही कहा जा सकता !बटवारे केलिए जो सबसे अधिक जिम्मेदार था वो था उस वक़्त का माहौल !

Saturday, August 29, 2009

बिहार का गलत प्रचार

बिहार के बहार बिहारियों को वो मान-सम्मानं, वो इज्जत नही मिलती जितनी अन्य राज्यों के लोगों को मिलती है !
इसका सबसे बड़ा कारन यह है की बिहार को दुनिया के सामने इस प्रकार दर्शाया गया है, इस प्रकार प्रचारित कीया गया है की बिहार का जिक्र करते ही लोगों के जहन में बिहार की जो तस्बीर सबसे पहले उभर के आती है वो एक गुंडों, बाहुबलियों, और भ्रष्ट अफसरों से भरी राज्य की आती है ! बिहार को हमेसा गरीब और पिछरा राज्य बताया जाता है !
न्यूज़ चॅनल, समाचार पत्रों में हमेसा बिहार की बुराई  छापते और दिखाते है परन्तु यह पुर्ण सत्य नही होता है ! बिहार की बुराई तो दिखाते है पर पिचले ५ वर्ष से जो विकाश बिहार में हो रहा है उसे नही दिखाते है बिहार की अच्छाई नही दिखाते है !
बिहार में जब कोई गुंडागर्दी, या बुरी घटना होती है तो उसे मिर्च - मशाला लगा कर बार-बार दिखाते है परन्तु पिचले कुछ वर्षो में बिहार की कानून व्यवस्था में जो सुधर हुआ है और कानून का जो राज्य अस्थापित हुआ है उसे नही दिखाते है !
बिहार की सुधरती कानून व्यवस्था का सबसे बड़ा प्रमाण सहाब्बुद्दीन, सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला राजन तिबारी जैसे बाहुबलियों को मिली उम्रकैद  की सजा है !
बिहार को गरीब तो दिखाते है पर यह नही बताते की बिहार वर्ष 2005-06 और 2007-08 में बिहार की इकोनोमी 10.5 per cent बढ़ी है ! बिहार इकोनोमी ग्रोथ के हिसाब से देश का तीसरा सबसे विकशित राज्य है ! पहले अस्थान पर हरियाणा है जिसकी इकोनोमी ग्रोथ 11 per cent बढ़ी है ! दुशरे अस्थान पर गोवा है जिसकी इकोनोमी ग्रोथ 10.9 per cent है ! ये आंकरे July 8, 2009 को लोक सभा में प्रस्तुत कीया गया था !
बिहार में हो रहे विकाश को देख कर लोगों ने तो अब नीतिश कुमार को विकाश पुरुष की उपाधि तक दे डाली है ! बिहार दौरे पे आये A.P.J. kalam ने बिहार में हो रहे विकाश को देख कर कहा ( Bihar Vision: Developed State by 2015) 2015 तक बिहार एक विकशित राज्य होगा !
बिहार में हो रहे विकाश को राहुल गाँधी  ने भी माना है ! बिहार में हो रहे विकाश का लोग बिहार के सडको और वंहा के बड़े बड़े शौपिंग काम्प्लेक्स को देख कर ही पता चलता है ! बिहार में कुछ सालो में शिक्षा का भी खूब प्रचार हुआ है ! नए नए कॉलेज और स्कूल खोले जा रहे है !

Saturday, August 1, 2009

हिन्दी का खोता अस्तित्व


पिछले कुछ दिनों से हमलोग संसद भवन( लोकसभा ,राज्यसभा ) में हिन्दी पर हो रही राजनीती को सुन रहे है। उनलोगों की बहस को और कुछ ऐसी घटनाओ ( कुछ दिनों पहले हमलोगों ने अख़बार में पढ़ा की हमारे देश की सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा संसथान जवाहरलाल नेहरू विश्वविध्यालय में कुछ छात्रों को यह कह कर की " अंग्रजी नही आती तो यंहा दाखिला क्यों लेते हो ?? " कह कर नीचा दिखाया गया ) को सुन कर ऐसा लगता है की हिन्दी जो हमारी राष्ट्रीय भाषा है बस नाम की राष्ट्रीय भाषा रह गयी है । ऐसा लगता है की अंग्रजी के बढ़ते प्रभाव के कारण आज हमलोग अपने ही राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को भूलते जा रहे है या ऐसा कहना ग़लत नही होगा की अंग्रजी के बढ़ते प्रभाव के आगे आज हिन्दी कहीं खो सी गयी है । ऐसे में मेरे मन में यह प्रशन बार -बार उठता है की क्या आज हमलोग अपनी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को भूलते जा रहे है ?? जहां कंही भी देखो स्कूल , कॉलेज बैंक सरकारी कार्यालय हर जगह अंग्रजी का प्रचलन बढ़ता जा रहा है या ऐसा कहें की अंग्रजी का एकाधिकार होता जा रहा है । कभी -कभी तो ऐसा लगता है की हमारी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी नही अंग्रजी है । कभी- कभी तो मई सोचता हूँ की अगर मेरे वस में होता तो मै हिन्दी की जगह अंग्रजी को राष्ट्रीय भाषा बना देता क्योंकि क्या करना ऐसी राष्ट्रीय भाषा का जो आज अपने ही राष्ट्र में अपने ही खोते हुए अस्तित्व को बचने की ज़ंग लड़ रहा है ??
कोई भी आज हिन्दी का प्रयोग नही करना चाहता क्योंकि आजकल अंग्रजी बोलना एक फैशन सा होगया है। अगर आज हम हिन्दी बोलते है तो हमे इतना सम्मान नही मिलता जितना की एक अंग्रजी बोलने वाले लोंगो मिलता है । मै ये नही कहता की हमे अंग्रजी से नफरत है या मै अंग्रजी बोलने वाले लोंगो का विरोध करता हु क्योंकि अंग्रजी दुनिया की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है और अगर हमे आगे बढ़ना है तो हमे अंग्रजी आनी चाहिये परन्तु मै यह भी कहूँगा की हिन्दी की अनदेखी न करे । हमारे देश में कई भाषा बोली जाती है पर आज भी हमारे देश में कुछ ऐसे राज्य है जहां हिन्दी नही बोली जाती या ऐसा कन्हे की वो बोलना नही चाहते । कुछ राज्य अपने को मराठीभाषी तो कोई तमिलभाषी तो कोई कन्नड़ भाषी बोलते है । हमारे देश में कुछ ही ऐसे राज्य जैसे , उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखण्ड , उत्तराँचल इत्यादी है जो हिन्दी बोलते है इसलिए इन्हे हिन्दीभाषी कहा जाता है । अगर हम ऐसे ही अपनी राष्ट्रीय भाषा को भूलते गए तो वो भी दिन दूर नही जब हिन्दी भी एक ऐतिहासिक लिपि ( पांडू लिपि की तरह ) बन कर रह जायेगी । ऐसे में हम हिन्दी के खोते अस्तित्व को हमलोग कैसे बचा सकते है ??
अतः अपने कुछ सुझाव देना चाहता हूँ
१ ) क्यो न हिन्दी को अंग्रजी की तरह १०+२ तक अनिवार्य विषय घोषित कर दिया जाए ??
२ ) जिस प्रकार अंग्रजी सिखाने के शिक्षा संसथान खोले जाते है क्यों न हिन्दी सिखाने केलिए भी शिक्षा संसथान
खोले जाए ??
३) हर सरकारी या गैर सरकारी कार्यालय में हिन्दी भाषा का प्रयोग अनिवार्य कर दिया जाए ।
हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और हमे हिन्दी पर गर्व है http://knol.google.com/k/anonymous/ह-न-द-क-ख-त-अस-त-त-व/2ezc3emmc7ynu/1